Death eating is a social evil

Death eating is a social evil | मृत्युभोज सामाजिक बुराई है

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Death eating … मृत्युभोज इंशान अपने जीभ के स्वादों के लिए भोले भाले लोगो का शोषण करने के लिए व कुछ लोगो द्वारा समाज के अन्य लोगो पर वर्चस्व व दबदबा कायम करने के लिए वर्षो पहले सामाजिक बुराइयों को जोर शोर के साथ समाज पर थोपे गये

वेसे तो समाज में कई सामाजिक बुराइया है जैसे– दहेज़ प्रथा, बाल मजदूरी, सत्ती पर्था या फिर मृत्युभोज….ऐसे ही अनेक बुराइया जिस की वजह से मध्यमवर्गिये समाज की कमर टूटी , पर जो सबसे बड़ी समस्या बनी वो थी मृत्युभोज की सामाजिक कुरीति जो कई सदियों से आज तक बनी रही है,

क्या है Death eating …?

भारतीये वैदिक परम्परा के अनुसार जो 16 संस्कार है उनमे से एक अंतिम संस्कार भी है अगर किसी व्यक्ति कीमृत्यु होती है तो उसके अंतिम करने के साथ ही कई कई सामाजिक क्रियाये भी की जाती है जैसे पिंडदान, मृतक की समशान से अस्थियो का संचय करना, संचित अस्थियो को गंगा नदी या फिर किसी अन्य पवित्र नदी या जलाशय में विसर्जित करना ,

पुरे घर की सफाई करना , घर में भजन करना …आदि करते है इसी के साथ बाहरवे या तेहरवे दिन ब्राह्मणों, रिश्तेदारों व् गाव वालो को सामूहिक भोजन कराया जाता है जो बहुत ही खर्चीला होता है

Death eating
Death eating

Death eating क्यों जरुरी है इसे बंद करना

मृत्युभोज ने सिर्फ समाज की कमर तोडी है इससे ज्यादा कुछ नही , इसलिए इसे जितना जल्दी हो सके बंद कर देना चाहिए , जिस घर में मृत्युभोज किया जाता है उस परिवार से एक सदस्य तो पहले ही कम हो जाता है

और उसके बाद मिठाई बनाना या कई लोगो को एक साथ खाना खिलाना किसी भी तरह से सही नहीं है. कई बार एसा होता है की जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है उसके बच्चे छोटे होते है

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और वो अपने पेरो पर अच्छे से खड़े ही नहीं हो पाते उससे पहले ही पिताजी के मृत्युभोज के लाखो का कर्ज हो जाता है जिस बेटे को अपने बच्ग्पन में पढ़ लिखकर अपना भविष्य निखारना था अब वो जिन्दगी भर उस कर्ज के बोझ में दबकर अपने सपने मारता रहेगा..

ऐसे ही, कई ऐसे बेटे भी होते है जो जीते जी अपने माँ बाप को वर्धाश्र्म में रखते है और मृत्यु होने के बाद लाखो का खर्च कर के सिर्फ दिखावा करते है इसलिए इसे बंद करना ही सही फेसला है

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क्यों बंद कर देना चाहिए मृत्युभोज को

  • मृत्युभोज मृत व्यक्ति के घर पर दुसरे दिन से लेकर तेहरवे दिन तक कियां जाता है, तो जिस घर में अभी मोत आई हो उस घर का सदस्य चला गया हो…. क्या उस घर में बैठकर मिठाई खाना सही है …..सायद कभी नहीं इसलिए इसे बंद ही कर देना चाहिय
  • एक फिजुल खर्चा है इस पर लाखो रुपयों को पानी की तरह बहाया जाता है, और बेमतलब इतना पैसा खर्च करना गलत है अगर इन्ही पैसो को सही जगह लगाया जाये तो काफी सामाजिक बदलाव लाया जा सकता है
  • यह एक रुठिवादिता है हजारो साल पहले क्या पता किस परस्थिति में और इसे क्यों सुरु किया गया था जिसे मानव समाज आज भी जारी रखे हुए है और जिस का कोई ओचित्य ना हो उसे बंद ही करना अच्छा होता है
  • मृत्युभोज को एक प्रकार से परम्परा बना दिया गया है, जिससे गरीब लोगो को भी समाज से दबाव में इसे करना पड़ता है जिससे उनपर लाखो का कर्ज हो जाता है, और उस कर्ज को ब्याज सहित चुकाना पड़ता है कई बार गरीब लोग ज्यादा कर्ज होने आत्महत्या तक कर लेते है इसलिए इसे बंद कर के समाज में काफी बदलाव लाया जा सकता है

क्या फायदे हो सकते है मृत्युभोज बंद करने के

समाज में कई लोग इसे भी है जो आर्थिक रूप से काफी सक्षम होते है और ये अपना वर्चस्व कायम करने के लिए बेमतलब मृत्युभोज पर खर्च करते है इसलिए इसे बंद कर के इन पैसो को गाव के विकाश कार्य में लगाया जा सकता है जिससे से कुछ ही सालो में गावो में काफी परिवर्तन व् विकाश किया जा सकता है

अधिक्त्य गाव आज भी विकास को तरस रहे है इसलिए अगर मृत्युभोज में खर्च को रोककर गाव के कार्य जैसे – बैठक कुर्सिया लगाना , सॉलर लाइट लगाना, पेड – पोधे लगाना, पानी की व्यस्था करना …..कार्य किया जाये तो काफी विकाश हो सकता है

इस पोस्ट से ये निष्कर्स निकलता है की हमे म्रत्यु भोज को बंद कर देना चाहिए

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